Thursday 23 June 2016

मानसिक विकारों और कुष्ट रोगों से मुक्ति दिलाती है, 'योगिनी एकादशी'
परमेश्वर श्री विष्णु ने मानवकल्याण के लिए अपने शरीर से पुरुषोत्तम मास की एकादशियों को मिलाकर कुल छबीस एकादशियों को प्रकट किया | कृष्ण पक्ष और शुक्लपक्ष में पड़ने वाली इन एकादशियों के नाम और उनके गुणों के अनुसार ही उनका नामकरण भी किया | इनमें उत्पन्ना, मोक्षा, सफला, पुत्रदा,षट्तिला, जया, विजया, आमलकी, पापमोचनी, कामदा, वरूथिनी, मोहिनी, निर्जला, देवशयनी और देवप्रबोधिनी आदि हैं | सभी एकादशियों में नारायण समतुल्य फल देने का सामर्थ्य हैं इनकी पूजा-आराधना करनेवालों को किसी और पूजा की आवश्यकता नहीं पड़ती क्योंकि, ये अपने भक्तों की सभी कामनाओं की पूर्ति कराकर उन्हें विष्णुलोक पहुचाती हैं | इनमे 'योगिनी' एकादशी तो प्राणियों को उनके सभी प्रकार के अपयश और चर्मरोगों से मुक्ति दिलाकर जीवन सफल बनाने में सहायक होती है | पद्मपुराण के अनुसार 'योगिनी' एकादशी समस्त पातकों का नाश करने वाली संसारसागर में डूबे हुए प्राणियों के लिए सनातन नौका के समान है |साधक को इसदिन व्रती रहकर भगवान विष्णु की मूर्ति को 'ॐ नमोऽभगवते वासुदेवाय' मंत्र का उच्चारण करते हुए स्नान आदि कराकर वस्त्र, चंदन, जनेऊ गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, ऋतुफल, ताम्बूल, नारियल आदि अर्पित करके कर्पूर से आरती उतारनी चाहिए | योगिनी एकादशी देह की समस्त आधि-व्याधियों को नष्ट कर सुदंर रूप,गुण और यश देने वाली है | इस एकादशी के संदर्भ में पद्मपुराण में एक कथा भी है जिसमे धर्मराज युधिष्ठिर के सवालों का जवाब देते हुए श्रीकृष्ण कहते हैं कि हे नृपश्रेष्ठ ! अलकापुरी में राजाधिराज महान शिवभक्त कुबेर के यहाँ हेममाली नाम वाल यक्ष रहता था | उसका कार्य नित्यप्रति भगवान शंकर के पूजनार्थ मानसरोवर से फूल लाना था | एक दिन जब पुष्प लेकर आरहा था तो मार्ग से कामवासना एवं पत्नी 'विशालाक्षी' के मोह के कारण अपने घर चला गया और रतिक्रिया में लिप्त होने के कारण उसे शिव पूजापुष्प के ने पुष्प पहुचाने की बात याद नही रही | अधिक समय व्यतीत होनेपर कुबेर क्रोधातुर होकर उसकी खोज के लिए अन्य यक्षों को भेजा | यक्ष उसे घर से दरबार में लाये उसकी बात सुनकर क्रोधित कुबेर ने उसे कोढ़ी होने का शाप दे दिया | शाप से कोढ़ी होकर हेम माली इधर-उधर भटकता हुआ एक दिन दैवयोग से मार्कण्डेय ॠषि के आश्रम में जा पहुँचा और करुणभाव से अपनी व्यथा बताई | ॠषि ने अपने योगबल से उसके दुखी होने का कारण जान लिया और उसके सत्यभाषण से प्रसन्न होकर योगिनी एकादशी का व्रत करने की सलाह दी | हेममाली ने व्रत का आरम्भ किया और व्रत के प्रभाव से हेममाली का कोढ़ समाप्त हो गया और वह दिव्य शरीर धारण कर स्वर्गलोक चला गया | पं जयगोविन्द शास्त्री

Sunday 27 September 2015

पितृपक्ष पर्व 28 सितंबर से
अपने पूर्वजों के प्रति सम्मान एवं श्रद्धा प्रकटकर आशीर्वाद प्राप्ति का पवित्रपर्व श्राद्ध 28 सितंबर सोमवार से आरम्भ हो रहा है, इसदिन प्रतिपदा तिथि सुबह 08 बजकर 20 मिनट पर ही आरंभ हो रही है, अतः प्रतिपदा तिथि का श्राद्ध इसीदिन दोपहर 11बजकर 36 मिनट से 12 बजकर 24 मिनट तक के मध्य करना शुभ रहेगा | शास्त्रों-पुराणों में पितृों की महिमा का वर्णन करते हुए कहा गया है कि पितृो वै जनार्दनः, पितृो वै वेदाः, पितृो वै ब्रह्मः, पितृ ही जनार्दन हैं, पितृ ही वेद है, पितृ ही ब्रह्म हैं, अतः जन्म-जन्मान्तर तक अनेकों योनियों में भटकते हुए जीव जब मनुष्य योनि में आता है तो उसे पितृरुपी जनार्दन के प्रतिश्राद्ध-तर्पण करने का अवसर मिलता है जिससे उसे वर्तमान के साथ-साथ भविष्य में भी होनेवाले जन्मों में उत्तम लोक और उत्तम योनि प्राप्त हो | जो मनुष्य वर्ष पर्यन्त दान-पुण्य, पूजा-पाठ आदि नहीं करते वै भी आश्विन माह के कृष्ण पक्ष में केवल अपने पितृों का श्राद्ध-तर्पण करके ईष्टकार्यसिद्धि एवं उन्नति प्राप्त कर सकते हैं | एक वर्ष में बारह महीने की बारह अमावस्यायें, सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग के प्रारम्भ की चारों तिथियाँ, मनुवों के आरम्भ की चौदह मन्वादि तिथियाँ, बारह संक्रांतियां, बारह वैधृति योग, बारह व्यतिपात योग, पंद्रह महालय-श्राद्ध पक्ष की तिथियाँ, पांच अष्टका, पांच अन्वष्टका और पांच पूर्वेद्युह ये श्राद्ध करने के 96 अवसर हैं जिनमें मनुष्य अपने पूर्जवों के प्रति श्राद्ध तर्पण करके पितृदोष से मुक्ति पा सकता है | जिन जातकों की जन्मकुंडलियों में पितृदोष हो, उनके लिए तो यह अवसर वरदान की तरह है क्योंकि इन्हीं दिनों पितृ पृथ्वी पर पधारते हैं | श्राद्ध का समय आ गया है ऐसा विचार करके पितृ अपने-अपने कुलों में मन के सामान तीव्र गति से आ पहुचते हैं, और जिन ब्राह्मणों को श्राद्ध में भोजन कराया जाता है,उन्हीं के शरीर में प्रविष्ट होकर पितृगण भी भोजन करते हैं, उसके बाद अपने कुल के श्राद्धकर्ता को आशीर्वाद देकर पुनः पितृलोक चले जाते हैं | किसी भी माह की जिस तिथि में परिजन की मृत्यु हुई हो श्राद्धपक्ष में उसी तिथि के आने पर अपने पितृ का श्राद्ध करें | पति के रहते ही जिनकी मृत्यु हो गयी हो उन नारियों का श्राद्ध नवमी तिथि में करें | एकादशी में वैष्णव सन्यासी का श्राद्ध, शस्त्र, आत्म हत्या, विष, वाहन दुर्घटना,सर्पदंश, ब्राह्मण श्राप ,वज्रघात, अग्नि से जले हुए, दंतप्रहार-पशु से आक्रमण, फांसी लगाकर मृत्य, ज्वरप्रकोप, क्षयरोग, हैजा, डाकुओं के मारे जाने से हुई मृत्यु वाले पूर्जवों का श्राद्ध चतुर्दशी को करें | जिन पूर्जवों की तिथि ज्ञात न हो एवं मृत्यु पश्च्यात अंतिम संस्कार न हुआ हो उनका श्राद्ध-तर्पण अमावस्या को करना चाहिए | सभी पितृों के स्वामी भगवान् विष्णु के शरीर के पसीने से तिल की और रोम से कुश की उतपत्ति हुई है, अतः तर्पण और अर्घ्य के समय तिल और कुश का प्रयोग करें |
 पं जय गोविन्द शास्त्री 

Thursday 27 August 2015

शिवशक्ति का कैलाश प्रस्थान दिवस 'श्रावण पूर्णिमा'
माहपर्यंत भगवान शिव के पृथ्वी पर भ्रमण और उन्हें समर्पित श्रावण माह का कल अंतिम दिन है, पूर्णिमा के दिन जब चन्द्र अपनी सम्पूर्ण कलाओं और सहस्रों शीतल रश्मियों से संसार को आच्छादित कर देते हैं, और माँ महालक्ष्मी पाताल लोक के राजा बलि के यहाँ से बलि को रक्षासूत्र बांधकर विष्णु को मुक्त करा लेती हैं तो भगवान् शिव माँ शक्ति और गणों के साथ कैलाश पर्वत की ओर प्रस्थान करते हैं | इसप्रकार मोक्षदायिक मायाक्षेत्र में श्रावण कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमापर्यंत शिव के निवास की यह अंतिम तिथि रहती है | इसदिन रुद्राभिषेक करना, पंचाक्षर मंत्र का जाप, जप-तप, पूजा-पाठ और दान्पुन्य विशेष महत्व रहता है | वैदिक ब्राह्मणों द्वारा इसदिन 'श्रावणी उपाकर्म' किया जाता हैं इसलिए वैदिक ब्राह्मण गण इसदिन प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त में पवित्र नदी तालाब तीर्थ या देवालय पहुँच कर हेमाद्रिसंकल्प करते हैं | इस आध्यात्मिक विधान में षठकर्म, तीर्थों का आह्वाहन, संकल्प, पंचगव्य स्नान सहित शिखा सिंचन, नवीन यज्ञोपवीत धारण पश्च्यात विष्णु पूजन करना चाहिए | पुनः प्रजापिता ब्रह्मा, चारोंवेद और ऋषियों का पुरुष सूक्त के मंत्रों द्वारा आवाहन/स्तवन करना चाहिए | विधान पूर्ण होने पर आचार्य के हाथों रक्षावंधन बंधवाया जाता है | जिस स्थान पर सामूहिक व्यवस्था हो वहाँ सभी एक दूसरे को रक्षासूत्र बांधे | इसदिन ग्रामीण क्षेत्रों में कुल पुरोहित द्वारा रक्षा सूत्र बांधने का विधान है | सभी सनातनधर्मी ब्राह्मण अपनी वाणी की पवित्रता, सत्याचरण, मन, वचन और कर्म की पवित्रता का संकल्प लेकर यज्ञोपवीत बदलते हैं | पूजनोपरान्त विष्णु-लक्ष्मी के दर्शन से सुख, और समृद्धि की प्राप्ति तो होती ही है साथ ही इस पूर्णिमा के दिन पर शिवलिंग पर शहद, और पंचामृत का लेप करने से प्राणी कर्ज सेमुक्ति पा लेता है विद्यार्थियों को इसदिन शिवालिंग पर मिश्री और दूध के अमृततुल्य मिश्रण का लेप करते हुए उत्तम विद्या की प्राप्ति हेतु प्रार्थना करना करना चाहिए |अविवाहित अथवा विवाह में विलंब हो रही महिलाओं को गन्ने के रस से अभिषेक करने चाहिए शिव-शक्ति की कृपा से उनके जीवन में उत्तम दाम्पत्य सुख की प्राप्ति होगी |    पं जयगोविन्द शास्त्री

Thursday 9 July 2015

बृहस्पति का सिंह राशि में प्रवेश बनेगा 'कुंभ' महापर्व योग-
देवगुरु बृहस्पति अपनी उच्चराशि 'कर्क' की यात्रा समाप्त करके 14 जुलाई की सुबह सिंह राशि में प्रवेश कर रहे हैं, इस राशि पर गुरु लगभग 13 माह रहने के पश्च्यात कन्या राशि में प्रवेश कर जायेंगें | इनके राशि परिवर्तन का प्रभाव भूमंडल पर सभी प्राणियों के कार्य-व्यापार में हानि-लाभ के अतिरिक्त शासन सत्ता और न्यायिक प्रक्रिया को भी प्रभावित करता है | गुरु ब्रह्म विद्या और ज्ञान के प्रदाता हैं इनके अनंत ज्ञान से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने इन्हें देवताओं और ग्रहों का गुरु मनोनीत किया | देवगुरु शादी-विवाह, संतान सुख, शिक्षा-प्रतियोगिता में सफलता, न्यायिक प्रक्रिया, आध्यात्मिक गुरुओं, तीर्थ स्थानों, पवित्र नदियों, धार्मिक साहित्यों, अध्यापकों, ज्योतिषियों, दार्शनिकों, लेखकों, कलाकारों एवं वित्तिय संस्थानों में कार्यरत व्यक्तियों के कारक हैं धनु और मीन राशियों के स्वामी गुरु कर्क राशि पर तथा मकर राशि पर नीच संज्ञक होते हैं जन्मकुंडली में ये दूसरे, पाचवें, नवें और ग्यारहवें भाव के लिए अधिक शुभफल कारक होते हैं | जन्मकुंडली में बलवान गुरू के प्रभाव वाले जातक दयालु, दूसरों की सहायता करने वाले, धार्मिक तथा मानवीय मूल्यों को समझने वाले बुद्धिमान होते हैं, ये कठिन हालात में भी विषयों को आसानी से समझ लेने की क्षमता रखते हैं | ऐसे लोग सृजनात्मक कार्य करने वाले होते हैं जिस कारण समाज में इनका विशेष सम्मान रहता है | इसवर्ष बृहस्पति 12/13 सितंबर को सिंह सूर्य और चंद्र के साथ युति करेंगें, जिसके फलस्वरूप महारष्ट्र के गोदावरी तट पर 'त्र्यम्बक' में अतिदुर्लभ 'कुंभ' महापर्व का योग बनायेंगें | ऐसे सुअवसर पर सभी ग्रह आपसी राग-द्वेष त्याग कर मित्रता पूर्ण व्यवहार करते हुए शुभ फलदाई रहेंगे | सिंह राशि पर बृहस्पति के आगमन का शुभा-शुभ फल अन्य सभी राशियों के लिए कैसा रहेगा इसका ज्योतिषीय विश्लेषण करते है
मेष - विद्यार्थियों को शिक्षा प्रतियोगिता में सफलता, नव विवाहितों के लिए संतान सुख एवं वरिष्ठों के लिए धार्मिक-मांगलिक कार्य का अवसर |
वृष - मानसिक अशांति किंतु कार्यलाभ, जमीन-जायदाद से जुड़े मामलों का शीघ्र निपटारा होगा, सामाजिक कार्यों पर व्यय किंतु प्रतिष्ठा भी बढ़ेगी |
मिथुन - भाईयों में असहमति/अविश्वास का माहौल न बनने दें, विदेश यात्रा एवं बुजुर्गों को पौत्र सुख की प्राप्ति, आय के साधन बढेंगें |
कर्क - कार्यों में सफलता प्राप्त होगी, धन लाभ एवं पदोन्नति के अवसर मिलेंगे, तीर्थाटन एवं सामाजिक कार्यों पर धन खर्च होगा |
सिंह - मान सम्मान एवं प्रभाव की वृद्धि, उच्चाधिकारियों से सहयोग मिलेगा, स्वास्थ्य के प्रति सजक रहे, अधिक खर्च से बचे होगा |
कन्या - भाग-दौड की अधिकता से तनाव बढ़ेगा, शादी-विवाह में बज़ट से अधिक व्यय, माकन-वाहन का सुख, मुकदमों में विजय, कर्ज से मुक्ति |
तुला - आय के अनेक साधन बनेंगे, परिवार के बड़ों से सहयोग, संतान संबंधी चिंता से मुक्ति किंतु गुप्त शत्रुओं से सावधान रहे, नौकरी में पदोन्नति |
वृश्चिक - नौकरी में नए अनुबंध, प्रमोशन एवं स्थान परिवर्तन योग, पैत्रिक संपत्ति से लाभ, भौतिक सुख तथा मकान-वाहन के क्रय का योग |
धनु - शिक्षा प्रतियोगिता में चल रही असफलता की समाप्ति, कार्य क्षेत्र में प्रभाव बढ़ेगा, संतान सुख तथा चिंता दूर होगी, यात्रा-देशाटन के योग |
मकर - आपके द्वारा लिए गए निर्णय समाज में सराहनीय होंगे, षड्यंत्र का शिकार होने से बचें, स्वास्थ्य पर ध्यान दें, विवादित मामले आपस में हल करें |
कुंभ - शादी/विवाह एवं व्यापार के क्षेत्र में आ रही रुकावटें दूर होंगी, शिक्षा एवं प्रतियोगिता से लाभ, सामजिक पद-प्रतिष्ठा बढेगी |
मीन - गोचर बृहस्पति का प्रभाव आशांति एवं उलझने देगा, ऋण-रोग और गुप्त शत्रुओं से बचें, कार्य व्यापार में उन्नति | खान-पान पर अधिक ध्यान दें |

अशुभ गुरु को प्रसन्न करने के सरल उपाय-
यदि गोचर बृहस्पति आपकी राशि के लिए अशुभ हैं तो, गरीब एवं ज़रूरत मंद विद्यार्थियों की मदद करें, आम, बरगद, पीपल एवं अनार का वृक्ष लगाएं |महिलाएं कार्य उन्नति एवं उत्तम दामपत्य जीवन के लिए बृहस्पतिवार के व्रत रखें | सभी स्त्री/पुरुष बृहस्पति का गायत्री मंत्र- ॐ अंगिरो जाताय विद्महे वाचस्पतये धीमहि तन्नो गुरूः प्रचोदयात् | का जप प्रतिदिन स्नान के बाद ११ बार जपें | पं जयगोविन्द शास्त्री




Monday 22 June 2015

'दुःख-दारिद्र्य से मुक्ति दिलाने आता है, मलमास'
17 जून से आरम्भ हो चुका मलमास अगले महीने की 16 जुलाई तक रहेगा | मुहूर्त ग्रंथों के अनुसार जिस चांद्रमास में सूर्य संक्रांति नहीं पड़ती उसे ही मलमास
या पुरुषोत्तम कहा गया है, जो 28 से 36 माह के मध्य एक बार आता है ! सिद्धांत ग्रंथो के अनुसार सूर्य का बारह राशियों पर भ्रमण में जितना समय लगता
है उसे सौर वर्ष कहा गया है, जिसकी अवधि 365 दिन 6 घंटे और 11 सेकेण्ड की होती है, इन्हीं बारह राशियों का भ्रमण चंद्रमा प्रत्येक माह करते हैं जिसे चांद्र
मास कहा गया है | चंद्रमा एक वर्ष में 12 बार सभी राशियों पर भ्रमण करते हैं जिसे चांद्र वर्ष कहा जाता है | चंद्रमा का यह वर्ष 354 दिन और लगभग 09 घंटे
का होता है ! परिणाम स्वरुप सूर्य और चन्द्र के भ्रमण काल में एक वर्ष में 10 दिनों का अंतर आ जाता है इस प्रकार सूर्य और चन्द्र के वर्ष का समीकरण ठीक
करने के लिए अधिक मास का जन्म हुआ ! ये बचे हुए दिन लगभग तीन वर्ष में 31 दिन से भी अधिक होकर अधिमास, मलमास या पुरुषोत्तम मास के रूप में
जाने जाते हैं ! पौराणिक कथा है कि आदिकाल काल में जब सूर्य एवं चंद्र की यात्रा के मध्य वर्ष में 10 दिनों का अंतर पडने लगा तो उसे विशुद्ध करने एवं वैदिक
गणितीय प्रक्रिया को ठीक करने के लिए अधिक मास का जन्म हुआ | स्वामी रहित होने के कारण मलमास की सर्वत्र निंदा होने लगी | अपनी निंदा एवं उपहास से
दुखी होकर वह सर्वेश्वर श्रीकृष्ण के पास गये और लोंगों द्वारा उपहास-तिरस्कार किये जाने की अपनी व्यथा बताई मलमास की करूँ व्यथा से द्रवित होकर परमेश्वर
श्री कृष्ण ने कहा कि मलमास तुम दुखी न हो आज से मै ही तुम्हारा स्वामी हूँ इसलिए आज से तुम 'पुरुषोत्तम मास' के नाम से जाने जाओगे | तुम्हारे माह के
मध्य किये गये सभी कार्य केवल मेरे ही निमित्त होंगें | अतः किसी भी तरह की कामना पूर्ति के लिए अनुष्ठान का आयोजन, विवाह, मुंडन, यज्ञोपवीत, नींव-पूजन,
गृह-प्रवेश आदि सांसारिक कार्य सर्वथा वर्जित रहेंगें | जो प्राणी इस मास में मेरा भजन-पूजन करेगा अथवा मेरी अमृतमयी श्रीमद्भागवत् महापुराण की कथा सुनेगा
उसे मेरा उत्तमलोक प्राप्त होगा मेरे सहस्त्र नाम, पुरुष सूक्त का पाठ, वेद मंत्रों का श्रवण, गौ दान, पौराणिक ग्रंथो का दान, वस्त्र, अन्न और गुड़ का दान करना
उत्तम फलदायी रहेगा !साधक को चाहिए कि इस मास के मध्य तामसिक भोजन और मांस मदिरा से परहेज करें ! केवल मेरी कथा ही सभी कष्टों से मुक्ति
दिलाने के लिए पर्याप्त रहेगी, तभी से मलमास को पुरुषोत्तम मास के रूप में भी जाना जाता है ! पं. जयगोविन्द शास्त्री

Monday 25 May 2015

गंगा दसहरा का क्या महत्व- पं जयगोविंद शास्त्री
आदिकाल में ब्रह्मा जी ने सृष्टि की 'मूलप्रकृति' से निवेदन किया कि हे पराशक्ति ! आप सम्पूर्ण लोकों का आदि कारण बनों, मैं तुमसे ही संसार की
सृष्टि आरम्भ करूँगा | ब्रह्मा जी के निवेदन पर मूलप्रकृति- गायत्री, सरस्वती, लक्ष्मी, ब्रह्मविद्या उमा, शक्तिबीजा, तपस्विनी और धर्मद्रवा इन सात
रूपों में अभिव्यक्त हुईं | इनमें सातवीं 'पराप्रकृति 'धर्मद्रवा' को सभी धर्मों में प्रतिष्ठित देखकर ब्रह्मा जी ने उन्हें अपने कमण्डलु में धारण कर लिया,
वामन अवतार में बलि के यज्ञ के समय जब भगवान श्रीविष्णु का एक चरण आकाश एवं ब्रह्माण्ड को भेदकर ब्रह्मा जी के सामने स्थित हुआ तब
ब्रह्मा ने कमण्डलु के जल से श्रीविष्णु के चरणों की पूजा की | पाँव धुलते समय उस चरण का जल हेमकूट पर्वत पर गिरा, वहाँ से भगवान शंकर के
पास पहुँचकर वह जल गंगा के रूप मे उनकी जटा में स्थित हो गया सातवीं प्रकृति गंगा बहुतकाल तक भगवान शंकर की जटा में ही भ्रमण करती
रहीं, तत्पश्च्यात सूर्यवंशी राजा दिलीप के पुत्र भागीरथ ने अपने पूर्वज राजा सागर की दूसरी पत्नी सुमति के साठ हज़ार पुत्रों का विष्णु के अंशावतार
कपिल मुनि के श्राप से उद्धार करने के लिए शंकर की घोर आराधना की | तपस्या से प्रसन्न होकर शंकर ने गंगा को पृथ्वी पर उतारा | इसप्रकार
'ज्येष्ठ मासे सिते पक्षे दशमी बुध हस्तयोः | व्यतिपाते गरा नन्दे कन्या चन्द्रे बृषे रवौ | हरते दश पापानि तस्माद् दसहरा स्मृता || अर्थात- ज्येष्ठ
मास शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि बुधवार, हस्त नक्षत्र में दस प्रकार के पापों का नाश करने वाली गंगा का पृथ्वी पर आगमन हुआ | उस समय गंगा
तीन धाराओं में प्रकट होकर तीनों लोकों में गयीं और संसार में त्रिसोता के नाम से विख्यात हुईं | गंगा ध्यान एवं स्नान से प्राणी दस प्रकार के दोषों-
काम, क्रोध, लोभ, मोह, मत्सर, ईर्ष्या, ब्रह्महत्या, छल-कपट, परनिंदा जैसे पापों से मुक्त हो जाता है, यही नही अवैध संबंध, अकारण जीवों को कष्ट
पहुंचाने, असत्य बोलने व धोखा देने से जो पाप लगता है, वह पाप भी गंगा 'दसहरा' के दिन गंगा स्नान से धुल जाता है | स्नान करते समय माँ
गंगा का इस मंत्र 'विष्णु पादार्घ्य सम्पूते गंगे त्रिपथगामिनी ! धर्मद्रवीति विख्याते पापं मे हर जाह्नवी | द्वारा ध्यान करना चाहिए और डुबकी लगाते
समय श्रीहरि द्वारा बताए गये इस सर्व पापहारी मंत्र- ॐ नमो गंगायै विश्वरूपिण्यै नारायण्यै नमो नमः | जप करते रहने से तत्क्षण लाभ मिलता है |

Thursday 14 May 2015

शनैश्चर जयंती १७ मई को
मृत्युलोक के दंडाधिकारी शनिदेव का जन्मोत्सव पर्व प्रत्येक वर्ष में ज्येष्ठ मास की अमावस्या को मनाया जाता है | पौराणिक कथाओं के अनुसार इनका जन्म
सूर्यदेव की दूसरी पत्नी छाया से हुआ, शनिदेव जब माँ के गर्भ में थे तब माँ छाया भगवान शिव की घोर तपस्या में लीन थी उन्हें अपने खान-पान तक की सुध
नहीं थी | छाया के तप के प्रभाव से गर्भस्थ शिशु शनि भी जन्म लेने के पश्च्यात पूर्णतः शिवभक्ति में लीन रहने लगे एकदिन उन्होंने सूर्यदेव से कहा कि पिता
श्री हर बिभाग में आपसे सात गुना ज्यादा होना चाहता हूँ, यहाँतक कि आपके मंडल से मेरा मंडल सात गुना अधिक हो, मुझे आपसे अधिक सात गुना शक्ति
प्राप्त हो, मेरे वेग का कोई सामना नही कर पाये, चाहे वह देव, असुर, दानव, या सिद्ध साधक ही क्यों न हो | आपके लोक से मेरा लोक सात गुना ऊंचा रहे,
मुझे मेरे आराध्य देव भगवान श्रीकृष्ण के प्रत्यक्ष दर्शन हों और मैं भक्ति-ज्ञान से पूर्ण हो जाऊं | पुत्र शनि के उच्च विचारों से प्रसन्न हो सूर्यदेव ने कहा वत्स !
तुम अविमुक्त क्षेत्र काशी चले जाओ और वहीँ शिव की तपस्या करो तुम्हारे सभी मनोरथ पूर्ण होंगें ! पिता की आज्ञा शिरोधार्य कर शनिदेव काशी गये और
शिवलिंग बनाकर अखण्ड शिव आराधना करने लगे | तपस्या से प्रसन्न होकर शिव प्रकट हुए और उन्हें ग्रहों में सर्वोपरि स्थान तो दिया ही साथ ही मृत्युलोक
का न्यायाधीश भी नियुक्त किया तथा न्यायिक प्रक्रिया का कठोरता से पालन करने के लिए इनके नाम की शाढेसाती और ढैया का वरदान भी दिया दिया
इसमें शाढेसाती की अवधि सत्ताईस सौ दिन और ढैया की अवधि नौ सौ दिन घोषित की | तबसे लेकर आजतक शनिदेव की ढैया और साढ़ेसाती का डर लोंगों
में व्याप्त है जिसका जीवन में शुभाशुभ प्रभाव व्यक्ति के आचरण और कर्म के अनुसार पड़ता है पिता सूर्य ने इन्हें मकर और कुंभ राशि के साथ-साथ अनुराधा,
पुष्य एवं उत्तराभाद्रपद नक्षत्र का अधिपति बनाया | शनिदेव ने जिस शिवलिंग की स्थापना की थी आज वही नवें ज्योतिर्लिंग 'श्रीकाशीविश्वनाथ' के नाम से जाने
जाते हैं ! भगवान शनि को प्रसन्न करने के लिए प्राणियों को शनि स्तोत्र, शनिकवच, शनि के वैदिक मंत्र का पाठ करना चाहिए अपने बड़ों के प्रति सम्मान रखना
चाहिए अहिंसा, उदारता, दयालुता, दया और सेवाभाव रखना ही शनिदेव की कृपा पाने के सरल उपाय हैं ! इनके जन्मदिन पर वस्त्र और अन्नदान का विशेष महत्व
रहता है इसदिन शमी अथवा पीपल के वृक्ष का रोपण करने नौ ग्रहों से सम्बंधित सभी कष्ट दूर हो जाते हैं | पं जयगोविन्द शास्त्री